सोयाबीन कीट- प्रबंधन प्रणाली  
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कीट का नामवैज्ञानिक नामकीट का रूप नुकसान का विस्तारआर्थिक नुकसानविवरणप्रबंधन
नीला भृंगCneorane sp.यह कीट गहरे चमकीले नीले(लगभग काला) का होता है जिसका सिर नारंगी रंग का होता है | यह कीट पहले अंकुरित सोयाबीन के दलपत्रों को खाता है, तत्पश्चात् पौधे के वृधि वाले भाग को खा कर नष्ट कर देता है जिससे पौधे की वृधि रुक जाती है| अधिक आक्रमण होने पर खेत में पौधे की संख्या घट जाती है| इस कीट का आक्रमण प्रायः 20-25 दिन तक रहता है| यह पाया गया है की बोवाई के बाद जब लगातार वर्षा के कारण भूमि में अधिक नमी बनी रहती है, तब इस कीट का प्रकोप अधिक होता है|  क्विनालफ़ॉस 25 ई.सी. @ 1500 मी.ली./हेक्टे. की दर से छिडकाव करें |
तना मक्खीMelanagromyza sojaeवयस्क मक्खी साधारण घरेलु मक्खी के समान किंतु आकर में लगभग 2 मि. मी. एवं चमकीले काले रंग की होती है| पूर्ण विकसित इल्ली हलके पीले रंग की एवं लगभग 3-4 मि.मी. लंबी होती है| यह कीट सोयाबीन उत्पादन करने वाले प्रायः सभी छेत्रो में फसल को ग्रसित करता है| यह वयस्क मक्खी दलपत्रों या पत्तियों के अंदर अण्डे देती है| अण्डे में से निकलने वाली छोटी सी इल्ली ही इस कीट की नुकसान करने वाली अवस्था है| पत्तियों की शिराओं के माध्यम से यह इल्ली तने में पहुच कर टेढ़ी-मेढ़ी सुरंग बनाकर खाती है| तना मक्खी सोयाबीन के फसल पर 4-5 पीढ़ियां व्यतीत करती है| फसल की बाद की अवस्था में प्रकोप होने पर यधपि पौधा सूखता नही है, किंतु तने में सुरंग के कारण फलियों की संख्या एवं दानो के वजन में कमी आ जाती है | कुछ फलियों में तो दाने विकसित ही नही हो पाते हैं| इल्ली अपना जीवन काल (लगभग 10-12 दिन) पूर्ण करने से पूर्व तने में एक निकास छिद्र बना देती है एवं बाद में शंखी में परिवर्तित हो जाती है| कुछ दिन बाद शंखी में से वयस्क मक्खी बनकर निकास छिद्र द्वारा बाहर आकर पुनः अपना जीवन चक्र प्रारंभ कर देती है| ऐसा पाया गया है की सोयाबीन की संवेदनशील प्रजातियों में यह मक्खी 80-90 प्रतिशत पौधों को ग्रसित करती है ( जिसका निर्धारण पौधों में किये गए निकास छिद्रों से किया जा सकता है)| अनुसंधान परिणामों से ज्ञात हुआ है की इस कीट की आर्थिक हानि सिमा तने में 26 प्रतिशत तक सुरंग बनी होना है| थायमिथोक्सम 30 ऍफ़.एस. @ 10 ग्रा./किलो बीज या क्लोरएन्ट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. @ 150 मी.ली./हेक्टे.
अलसी की इल्लीSpodoptera exiguaयह हरे, भूरे या कत्थई रंग की होती है| शरीर के दोनों ओर हलके पीले या हरे रंग की धारी होती है एवं पृष्ट भाग पर गहरे भूरे रंग की एक मोटी धारी होती है| वयस्क पतंगा भूरे रंग का होता है एवं इसके अग्र पंखों पर कीट के रंग के गोल व गुर्दे के आकार के धब्बे होते हैं|इस कीट का प्रकोप फसल की प्रथम त्रिपत्री अवस्था में होता है| फसल की प्रारंभिक अवस्था में कम वर्षा या देरी से बोवनी होने पर इस कीट का अधिक प्रकोप होता है| नवजात इल्लीयाँ प्रथम त्रिपत्र को जाल से चिपका कर, उसके हरे भाग को खुरच के खाती हैं, जिससे पूरी पत्तियाँ सफेद दिखने लगती हैं| बड़ी होने पर ये पत्तियों को अनियमित छेद बनाकर नुकसान पहुँचाती हैं एवं पौधे की वृधि वाले के नष्ट कर देती हैं| फलस्वरूप पौधों की बढ़वार प्रभावित होती है|  इसकी इल्लियों के रंग में विविधता पाई जाती है| सोयाबीन की पत्तियाँ खाने वाली इल्लियों के वयस्क पतंगे निशाचर होते हैं एवं प्रकाश स्रोत की ओर आकर्षित होते हैं| कीटों के इस स्वभाव का लाभ लेने के लिये खेतोंके किनारे प्रकाश-प्रपंच लगाने से ये कीट उसमें कैद हो कर मर जाते हैं|
पत्ती सुरंगक इल्लीAproaerema modicellaवयस्क कीट एक छोटा-सा स्लेटी रंग का पतंगा होता है जिसके ऊपरी पंखो की किनारों पर सफेद धब्बा पाया जाता है| निचले पंखो की बाहरी किनारों पर बालों की कतार होती है| इल्ली लगभग 4-6 मि. मी. लंबी एवं मटमैले भूरे रंग की होती है| इल्लियाँ पत्ती की दोनों सतहों के बिच में रह कर हरा भाग खाती है, जिससे पत्ती में झिल्ली के सफेद-सफेद फफोले दिखने लगते हैं| इनको सुरंग कहा जाता है जिनकी तुलना युद्ध चेत्र में सैनको द्वारा बनायी गयी बारूदी सुरंग से की जाती है| एक पत्ती में कई जगह इस प्रकार की सुर्नाग बन्ने के कारण पत्ती सिकुड़ कर चोंच नुमा हो जाती है | अधिक प्रकोप होने पर फसल जल जाने का आभास देती है| इल्ली पत्ती पर बनी सुरंद के अंदर शंखी में परिवर्तित हो जाती है|  इस कीट का प्रकोप महाराष्ट्र के दक्षिणी भाग एवं कर्नाटक के उत्तरी भाग में फसल की प्रारंभिक अवस्था में देखा गया है|सोयाबीन की पत्तियाँ खाने वाली इल्लियों के वयस्क पतंगे निशाचर होते हैं एवं प्रकाश स्रोत की ओर आकर्षित होते हैं| कीटों के इस स्वभाव का लाभ लेने के लिये खेतोंके किनारे प्रकाश-प्रपंच लगाने से ये कीट उसमें कैद हो कर मर जाते हैं|
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